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पूर्णिया का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Purnea)

पंचमुखी हनुमान मंदिर
पंचमुखी हनुमान मंदिर

अपना पूर्णिया बिहार का चौथा सबसे बड़ा जिला है, जोकि उत्तर बिहार में सबसे बड़े आर्थिक केंद्र के रूप में उभर रहा है। अपना पूर्णिया, पूर्णिया जिले और पूर्णिया डिवीजन दोनों के प्रशासनिक मुख्यालय के रूप में कार्य करता है। आधुनिक पूर्णिया जिला भारत के सबसे पुराने जिलों में से एक है और इसकी स्थापना 14 फरवरी 1770 को हुई थी। ये वो जमाना था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने पलासी(1757) और बक्सर(1764) की लड़ाई में बंगाल के नवाब, मुगल बादशाह और अवध के नवाब को पराजित कर दिया था और मुगल सम्राट से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अपने नाम करा ली थी।

यहाँ का जलवायु दार्जिलिंग की तरह अपनी अनुकूलता के लिए अच्छी तरह से जाना जाता है, इसीलिए इससे मीनी दार्जिलिंग (Mini Darjeeling) भी कहा जाता है । पूर्णिया जिले में आज के पूर्णिया, अररिया, कटिहार और किशनगंज जिले तो थे ही, साथ ही बंगाल में दार्जिलिंग तक का इलाका था। 1901 में प्रकाशित गजेटियर के अनुसार पूर्णिया ज़िले का क्षेत्रफल 4994 स्क्वायर मील व जनसंख्या 18,74,794 थी जिसमे 958452 पुरुष व 916342 महिलाएं थी।

पूर्णिया जिले की स्थापना (Establishment of Purnea district)

समाहरणालय, पूर्णिया

पूर्णिया जिले की स्थापना कब और किस प्रक्रिया से हुई इसे खोजने का श्रेय पूर्णिया के ही प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ(प्रो) रामेश्वर प्रसाद को जाता है जिन्होंने कई सालो के अथक प्रयास के बाद उसकी सही तारीख और उस जमाने की इमारतों के स्थल तक खोज निकाले। जिस 14 फरवारी को पूरी दुनिया प्यार दिवस (Valentine’s Day) के रूप में मनाती है, उसी दिन बिहार के पूर्णिया ज़िले का स्थापना दिवस भी है। 14 फ़रवरी 1770 को एक नौजवान अँगरेज़ कलेक्टर मिस्टर डुकरेल ने पूर्णिया के सबसे पहले कलेक्टर के रूप में पदभार संभाला था।

2008 से पहले ये किसको मालूम नही थी कि पूर्णिया जिले की स्थापना कब हुई ?, जब बिहार सरकार ने सभी ज़िलों के स्थापना दिवस मनाए जाने का निर्देश दिया, तब पूर्णिया के तत्कालीन कलेक्टर श्रीधर चेरुबोलु ने इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉक्टर रामेश्वर प्रसाद से आग्रह किया की पूर्णिया ज़िले का जन्म दिवस इतिहास की रौशनी में तय कर के बताएं। इस तरह 2008 में पहली बार जिले का 239 वां स्थापना दिवस मना।

डा० फ्रांसिस बुकानन ने 1809-1810 में पूर्णिया का व्यापक और विस्तृत सर्वेक्षण किया था. उस समय पूर्णिया जिले का विस्तार दार्जलिंग, नेपाल भागलपुर और कोशी की सीमओं तक था. बुकानन ने सम्पूर्ण क्षेत्र का भ्रमण टमटम , इक्का, पालकी, हाथी और पैदल तय किया था. आश्चर्यजनक रूप से इतने कम समय में यंहा की भू-संपदा , सामजिक जीवन , व्यापर, कृषि , वन्य जीव जंतु एवं कई अन्य क्षेत्रों से सम्बंधित आंकड़े एकत्रित किये जो इस्ट इंडिया कम्पनी के लिए उपयोगी थे . भारत के इतिहास में पहली बार आंकड़ो का इतना व्यापक और प्रमाणिक संकलन किया गया था. आंकड़ो का विश्लेषण कर वैज्ञानिक तरिके से किसी निष्कर्ष तक पंहुचने की परम्परा भी यंही से शुरू होती दिखती है।

पूर्णिया का नाम पूर्णिया कैसे पड़ा (How Purnea got its name Purnea)

पूर्णिया का नाम पूर्णिया कैसे पड़ा

पूर्णिया का नाम पूर्णिया कैसे पड़ा इसके पीछे कई तरह की किंवदंतियां हैं लेकिन वैज्ञानिक प्रमाण किसी का उपलब्ध नहीं है। मुगल बादशाह अकबर के समय भारत में जो पहला आधुनिक सर्वे टोडरमल के द्वारा हुआ था(संभवत: 1601) उसमें पुरैनिया शब्द का जिक्र है। यानी पुरैनिया का नामकरण आज से करीब 400 साल पहले हो चुका था।

कुछ लोग इसे माँ पूरण देवी मंदिर से जोड़कर देखते हैं जिसके पीछे संत हठीनाथ और संत नखीनाथ की कहानी है। लेकिन संत हठीनाथ का काल बहुत पुराना नहीं है। वो समय आज से करीब 250 साल पहले का है-लेकिन टोडरमल का सर्वे 400 साल पुराना है-जिसमें पूर्णिया का जिक्र पुरैनिया के नाम से आ चुका है। लेकिन जनमानस में पूरण देवी मंदिर की जो श्रद्धा है उसे देखते हुए कई लोग ऐसी बात जरूर करते हैं।