Maa Puran Devi Mandir पूर्णिया का ही नहीं, उत्तर बिहार का सबसे पुराने मंदिरों में से एक है जिसका प्राचीन में महत्व होने के साथ-साथ इस की धार्मिक मान्यताएं भी बहुत ज्यादा है ! पूर्णिया जिला का नाम भी इसी मंदिर के नाम पर पड़ा है|
पूरण देवी मंदिर पूर्णिया, प्राचीनतम मंदिरों में से एक है
मां पूरन देवी मंदिर (Maa Puran Devi Mandir) भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति का एक वसीयतनामा है। लगभग 600 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हुआ था | यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है और हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। मां पूरन देवी मंदिर अपनी स्थापत्य सुंदरता के अलावा अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। अगर आपको ऐतिहासिक मंदिर देखने का शौक हो तो एक बार आप पूर्णिया जिला के इस प्राचीन मंदिर को जरूर देखना चाहिए.
पुराण देवी मंदिर का इतिहास (History of Puran Devi Mandir)
वर्तमान में मंदिर के पुजारी परमानंद मिश्र के अनुसार करीब पांच शताब्दी पहले, शौकत अली नाम का एक नवाब था। नवाब होने के नाते उसके पास बहुत जमीन थी। यह क्षेत्र आलमगंज के नाम से जाना जाता था। इसी क्षेत्र में हाथीनाथ नाम का एक संत भी था। इसी संत ने इस पूरण देवी मंदिर की स्थापना की थी।
एक बार संत तालाब में स्नान कर रहे थे। उसी समय एक व्यक्ति एक हाथी को उस स्थान पर ले आया। उसने बड़े घमंड के लहजे में संत से हाथी के लिए रास्ता बनाने को कहा। संत ने कहा कि हाथी को प्रतीक्षा करनी चाहिए। उस आदमी ने कहा कि हाथी नवाब का है और हाथी को पानी में ले गया। संत ने बहुत क्रोधित होकर उसके दाँत तोड़ दिए। हाथी की मौत हो गई, जबकि वह आदमी मौके से फरार हो गया। तब से, दांतों को मंदिर के कमरे में बहुत सावधानी से संरक्षित किया गया है। मान्यताओं के अनुसार हाथीनाथ को ही मंदिर स्थापना का स्वप्न आया था।
हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है पूरण देवी मंदिर
इस घटना के बाद नवाब शौकत अली ने मंदिर के लिए अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा दान कर दिया। परमानंद मिश्र बताते हैं कि इस मंदिर की जमीन जिले के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। यहां तक कि पड़ोसी जिले अररिया में भी मंदिर की जमीन है। मगर बाद में बनने वाले महंतों ने धीरे-धीरे पूरी जमीन बेच दी। अब मंदिर के पास अत्यंत कम जमीन बची हुई है।
उन्होंने बताया कि महंत प्रथा खत्म होने के बाद एक ट्रस्ट समिति द्वारा मंदिर का संचालन किया जाता है। इसमें कई सरकारी पदाधिकारी भी सदस्य हैं। उन्होंने बताया कि इस मंदिर की जमीन सिकटी, मदनपुर, बागनगर, बरदाहा, कुंआरी सहित कई अन्य जगहों पर है।
मंदिर के पुजारी परमानंद मिश्र के अनुसार मंदिर के अंतिम महंत ने परंपरा के विपरीत जाकर शादी कर ली तथा मंदिर की जमीन को बेचना शुरू किया। इसके विरुद्ध कोर्ट जाया गया। इसमें मंदिर की 56 बीघा 8 कट्ठा 8 धुर जमीन को बचाया जा सका।
माँ पूरण देवी मंदिर, पूर्णिया कैसे पहुंचे
माँ पूरण देवी मंदिर, पूर्णिया जिला मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर चिमनी बज़ार मार्ग (पूर्णिया सिटी) में स्थित है। पूर्णिया-कसबा स्टेट हाई-वे के नाका चौक के पास से पश्चिम की ओर चिमनी बज़ार मार्ग निकलता है। नाका चौक (पूर्णिया सिटी काली मंदिर) से मात्र 1 किलोमीटर दूरी पर यह मंदिर स्थित है।
पूर्णिया जंक्शन रेलवे स्टेशन से
पूर्णिया रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर की है, आप चाहें तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट के द्वारा भी आसानी से पहुंच सकते हैं। स्टेशन रोड से आपको पूर्णिया-कसबा स्टेट हाई-वे पर आना होगा उसके बाद आप नाका चौक के पास से पश्चिम दिशा में चिमनी बज़ार मार्ग से आप आसानी से मंदिर परिसर तक पहुंच जाएंगे।
पूर्णिया बस स्टेशन से
पूर्णिया बस स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर स्थित है । शेयरिंग ऑटो रिक्शा से भी आप इस मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं । पहले आपको पूर्णिया सिटी के नाका चौक तक पहुंचना है, उसके बाद वहां से आपको चिमनी बाजार मार्ग के द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं ।
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